भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुक्तक-3 / सोनरूपा विशाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चाँद ने चाँदनी दी गगन के लिए
फूल ने ख़ुशबुएं दीं चमन के लिए
आइये हम नमन उनकी ख़ातिर करें
जान दे दी जिन्होंने वतन के लिए

त्याग, तप, वीरता की लड़ी हो गयी
देश हित में जुड़ी इक कड़ी हो गयी
जो हुई देश की अस्मिता के लिए
मौत वो ज़िन्दगी से बड़ी हो गयी

लाख कोशिश हुई पर मिटा ही नहीं
हारना भाग्य में जब लिखा ही नहीं
सत्य का, शौर्य, ताक़त का पर्याय है
अपने भारत सा कोई हुआ ही नहीं

देश की अस्मिता को संभाले रहे
देश की प्रीत का दीप बाले रहे
ज़िन्दगी जी तो जी देश हित के लिए
काम वीरों तुम्हारे निराले रहे

सूर्य जैसा उजास रहता है
दुख का हर क्षण निराश रहता है
साथ हो गर दुआ बुज़ुर्गों की
सुख सदा अपने पास रहता है

नींव होते हैं और रंगोली भी
मौन होते हैं और बोली भी
ये हमारे बड़े हमारे लिये
गुड़ भी होते हैं और निबोली भी

झिलमिलाती हैं ज्यों दीप की थालियाँ
मुस्कुराती हैं ज्यों फूल की डालियाँ
हैं धरा पर विधाता का उपहार ये
बेटियाँ हैं तो जग में हैं ख़ुशहालियाँ

फागुनी चित्र जैसी होती हैं
मांगलिक मित्र जैसी होती हैं
ख़ुशबुएं बाँटती हैं जीवन भर
बेटियाँ इत्र जैसी होती हैं

सूर्य से उगना है सीखा डूबना सीखा नहीं
फूल से खिलना है सीखा टूटना सीखा नहीं
ये सलीक़ा सीख पाई हूँ कि जब मैंने सदा
ज़िन्दगी से प्यार सीखा रूठना सीखा नहीं

दिन जागा मुम्बई सरीखा रात हुई कस्बाई
सूरज ने जब रौशन किरणें भेजीं हर अँगनाई
मादकता को त्याग पवन ने पहनीं जब निश्चलता
रात हुई मदमस्त रुबाई भोर हुई चौपाई