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मुक्तक-57 / रंजना वर्मा
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					जिसने पल में रचा सुघर  संसार किया
उसने है कब किसी एक से प्यार किया।
जगकर्ता की दृष्टि  सभी पर एक सदृश
सब से उस ने एक तुल्य व्यवहार किया।
लो छुपा दिल का राज़ क्या करना
बन किसी का  नवाज़  क्या करना।
जो  पड़े  जाना   बिन  बुलाये   ही
इस तरह का  रिवाज़  क्या  करना।।
वतन  तुम्ही  को  पुकारता है
तुम्हारे सब सुख सँवारता है।
सुनो   सपूतों  स्वदेश  भू  के
सदा  तुम्ही  को  निहारता  है।।
खुद फलक से  जमीं पे आ मौला
हम को खुद से ही दे मिला मौला।
डोलते    मौत    के    फरिश्ते  हैं
आबे  जमजम जरा  पिला  मौला।।
क्यों तरसते  रहें  चाँदनी  के लिये
हैं सितारे खिले  यामिनी  के लिये।
रोक  सकती  नहीं राह तारीकियाँ
हैं न जुगनू ये कम रौशनी के लिये।।
 
	
	

