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मुक्तक / मोहम्मद सद्दीक
Kavita Kosh से
धड़ रो मोल सीस बिन कोनी
सीस बिना धड़ धूळ समान
प्रीत बिना सा - दुनियां सूनी
मोत बिना जग सूळ समान।।
धड़ां मोकळो मिलसी
न्यारा माथा मोल मिलै है
मिनख टकै रा च्यार
अठै तो झुकतै तोल मिलै है।।
कण रो रिसतो समपूरण स्यूं
समपूरण रो कण स्यूं है
मण रो रिसतो एक सेर स्यूं
एक सेर रो मण स्यूं है।।
सामो गोधो गळी सांकड़ी
लारै मुड़ियां मान घटै
पकड़ सींगड़ा द्यो फटकारो
पाछ पगलियां चाल पड़ै।।
तन रो पूर पातळो पड़ियां
कईं लागसी कारी रे
मोठै मूंडै लारा गुटका
मन में तेज कटारी है।।
अरे सूरड़ी सेर जलमसी
मकड़ी ल्यासी भेणी
बाळू नै भी पींच-पींच कर
तेल काढ़सी तेली।।