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मुक्तावली / भाग - 2 / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

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भक्तिचंद्रिका - चान भक्त उर मे बसय श्याम रूप छवि - मूल
भक्ति - चन्द्रिका दिवस - भव उमस हरय प्रतिकूल।।11।।

माधुरी - मानस सर सरसिज सरस भक्तिभाव रुचिमंत
हरिक रूप मधु माधुरी सुरभि मुगुध अलि संत।।12।।

छवि - ध्यान धारणा यम नियम आसन प्राणायाम
सकल विधल बिंबित न यदि चित पट छवि घनश्याम।।13।।

रूप-छवि - पलहुँ पलक भरि रूप घन छवि जँ देथि देखाय
रवि शशि नखत समेत जग जाइत छनहिँ बिलाय।।14।।

चित्र-लोप - श्याम श्यामहिक छवि छटा छनहु छलक दृग कोर
चित पट चित्रित जगत जत मेटत पलटि विभोर।।15।।

अमर - श्रुति पुट गीता गान सुनि तुलसी दल मुख आनि
भागवतक रस पान कय मरितहुँ अमरक मानि।।16।।

भक्ति - ज्ञान तत्त्व श्रुति स्मृति विदित कर्म मर्म जत तत्त्व
किन्तु भागवत भक्ति सँ तलित न रहय महत्त्व।।17।।

भागवत - व्यास रसालक डारि फल भागवते रस मूल
शुक मुख आस्वादित बुझल परिछित मधुर अतूल।।18।।

भाग्य तरु - कर्म बीज सँ भाग्य तरु फूलय फड़य अवश्य
यदि च हरिक करुणा सलिल पटबय भक्तिक वश्य।।19।।

विषय नियोग - श्याम रूप शुचि, नाम यश, श्वास, सुरभि पद धूल
दृग, रसना, श्रुति, नासिका, परस अंग रुचि मूल।।20।।