मुक्ति-प्रसंगक मादे / शारदा झा
आपरेशन टेबुल पर सर्द परल देह
नहि होइत अछि विच्छिन्न
अपन अवचेतन मन सँ
भटकैत
अतीत, वर्तमान आ भविष्यक ब्लैकहोल मे
ठाओँ तकैत
समाप्त भ' जाइत अछि
सब तरहक अनुभूति
आ समयक चक्र
क्षण, पहर, दिवस वा जीवनक कोनो अंश
बान्हि नहि पबैत अछि
जीवक देह मे
आत्मा आ ओकर संज्ञान केँ
मोह पाश सँ मुक्त भेल जिजीविषा
देखैत अछि बाट
चेतनाक बिला जेबाक
जाहि सँ भ' सकय
सत्य सँ साक्षात्कार
विराम भेटै
पीड़ा सँ उद्भासित होइत कविता के
आ ओ होइ अग्रसर
मुमुक्षु भवन दिस
जतय जीवनक सरोकार जागृत होमय लगैत अछि
मृत्युक नील छाया मे
इ सब होइत अछि
ओहिना
जेना देखने रहथि फूलबाबू
अपन जीवनक दृष्टान्त आ सार
राजेंद्र सर्जिकल वार्ड मे
नचैत अपन आँखिक सोझाँ
लिखने रहथि महाप्रयाणक बोध
अपन मुक्ति-प्रसंग
दैत अज्ञेय के उत्तर
स्वीकार करैत अपन प्रारब्ध
एकगोट उग्रवादी
उग्रताराक नीलवर्ण समाहित क
अपन चेतना मे
बीछय लागल छलाह
बचल-खुचल श्वांसक अस्थि-फूल
अपन उग्रतारा केँ समर्पण लेल
एकटा वस्त्र-विहीन स्त्री के होइन बोध
सोनित मे लथपथ चीत्कार करैत
जीवनक विभिन्न बाट पर
स्वतंत्र होयबाक उद्बेग मे
से छलथिन बहुधा
हुनक हताहत आत्मा वा मृत्युक आभास
कखनहुँ क्षत-विक्षत समाज आ कतहु
विदीर्ण निहत देश
आ नहि तँ हुनकर
दलमलित भेल संज्ञान
ईथरक प्रभाव मे
शोणित के मोइस बना
मचोरि क राखि देलखिन समाजक अहंकार
विध्वंस क' देलखिन दम्भ
कुट्टी-कुट्टी क' देलखिन
रूढ़िवादी परम्परा आ वर्जनाक आदि-सर्प केँ
आ जीबय लगलाह ओहि क्षण मे
जखन समाज क दैनि बहिष्कार
वैह छलनि हुनकर मुक्तिक एकपेरिया रस्ता
जखन ज्वालामुखी सदृश हुनक आँखि
सेराय लगलनि
ओ मंगैत रहलाह मुक्ति अपन
राजकमल सँ
घुरि जयबाक लेल
अपन घर
भरिसक ओतहि छलनि
हुनकर ठाओँ
सब समाज-काल-खण्ड सँ इतर