भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुझको अपनी नज़र ऐ ख़ुदा चाहिए / बशीर बद्र
Kavita Kosh से
मुझको अपनी नज़र ऐ ख़ुदा चाहिए
कुछ नहीं और इसके सिवा चाहिए
एक दिन तुझसे मिलने ज़रूर आऊँगा
ज़िन्दगी मुझको तेरा पता चाहिए
इस ज़माने ने लोगों को समझा दिया
तुमको आँखें नहीं, आईना चाहिए
तुमसे मेरी कोई दुश्मनी तो नहीं
सामने से हटो, रास्ता चाहिए