भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुझको मेरा होश नहीं है / शिवम खेरवार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझको मेरा होश नहीं है।

सबकुछ धीमे-धीमे चलता,
समय यकायक ठहर गया है।
मद्धम झोंका किसी पवन का,
मुझे देख कर सिहर गया है।

समय-पवन खुसफुसा रहे हैं, कई कारणों का मंथन कर,
आख़िर बात रही क्या होगी, इसमें अब वह जोश नहीं है।
मुझको मेरा होश नहीं है।

कली फूल बनकर बैठी है,
मन से मन की कुछ बात चले।
मधुरिम स्पंदन, गुंजन को,
मुझ तक लेकर गात चले।

मुक्तक ने दोहे से बोला, उपवन गीतों का सूना है,
कोयल की तानों को सुनकर, हृदय हुआ मदहोश नहीं है।
मुझको मेरा होश नहीं है।