भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुझे उम्मीद है / रेखा चमोली

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझे उम्मीद है
एक दिन तुम जरूर ऊब जाओगे

मुझे उम्मीद है
एक दिन तुम जरूर थक जाओगे

इस खून खराबे से
इन डण्डों, झण्डों और गूॅजते नारांे से
इन फतवों, धमकियों, सुपारियों से
बेशर्म झूठों और अफवाहों से

जब तुम्हें अपने हाथों में लगे खून के धब्बे
अपनी थाली में रखी रोटी पर दिखेंगे
उठाते ही एक कौर
उस पर लगा खून देखकर
उल्टी हो जाएगी तुम्हेें
साथ बैठे तुम्हारे घरवाले घबराकर तुम्हारी ओर देखेंगे
एक पछतावे का भाव उनके चेहरे को सुखा देगा

अपने खून सने कपडे धोने से निकले
गाढे भूरे पानी में
अपने बच्चों को उंगलियां डुबाता देख
तुम चीख पडोगे
जल्दी से उनका हाथ साफ करोगे
तब कोई भी हैण्डवाश उनके हाथों के धब्बे नहीं छुडा पाएगा

रात में सोते हुए
नींद में बडबडाओगे
मुझे जाने दो प्लीज
मैंने तुम्हारा क्या बिगाडा है
प्लीज, मुझे जाने दो
तुम पसीना पसीना होकर उठ बैठोगे
तुम्हारी पत्नी जल्दी से लाइट जलाएगी
सपना देखा होगा कह हाथ थामेगी
तुम्हें दुुबारा सुलाने की असफल कोशिश करेगी

उस समय तुम्हारी ऑखों को चुभेंगे वे खूनी दृश्य
जब तुम भीड थे उन्मादी
जहर उगलते शब्द
तनी हुयी बंदूक
खूब नुकीला छुरा
तलवार या ईंट

उस समय तुम खूब छटपटाओगे कसमसाओगे
लौट जाना चाहोगे समय में पिछले
फेंक दोगे अपने छुरे और तलवारें
बन्द कर दोगे उन आवाजांे के रास्ते
जो तुम्हें भीड बनने को उकसाते हैं
अपनी आत्मा में लगे घावों को भरना चाहोगे

तुम जरूर लौटोगे कुदाल और हल की तरफ
नमक और प्रेम अभी इतना भी दुर्लभ नहीं हुआ।