मुझे ठहरना है: एक जून / श्रीकान्त जोशी
आज मेरे जन्मदिन को सौंपने वाले
माह की शुरुआत है
मैं उम्र के एक और दशक का नागरिक बन गया हूँ
इस दौर के दिन नहीं थाम पाते
जीने की इच्छाएँ,
इसलिए महसूस होता है
इन्हीं दिनों में अहमियत है जीवन की।
कुछ मुसीबतें ऐसी होती हैं
जिन्हें इसी दौर में चुनौती दी जा सकती है
ये अभिनव चुनौतियों के वर्ष मेरे ख़ाते में हैं।
मैं एक विजय हूँ विगत के लिए
और एक मार्ग नवागतों को।
मुसीबतों की चुभन सहते-सहते
अब चुभने लगा हूँ मुसीबतों को।
वे डरने लगी हैं
और मैं सोचता हूँ
समय हो या सत्ता
व्यक्ति हो या प्रकृति
यदि इनमें कहीं कोई कठोर चुभन है
अस्तित्व को
तो मुझे ठहरना है।
सर पर धधकता हुआ मार्तण्ड
पाँवों में परिक्रमा देते बवंडर
इन्हीं में मुझे जीवित रखना है
कुछ मधुरतम गीत
कुछ भुजाओं की तरह थाम लेने वाले स्वर!