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मुझे देवत्व नहीं चाहिए / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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मैंने
जब से तुम्हें देखा है
मेरा भीश्म
अपने संकल्प को भूल गया है
मैं क्या करुँ
कि मैं त्रेता का राम तो नहीं
कि शूर्पनखा के प्रेम निवेदन को
ठुकरा सकूँ
संभव है
मेरा यह सच
तुम्हें बुरा लगे
लेकिन यह सच है

हे राम !
मुझे तुम्हारा देवत्व नहीं चाहिए
मैं आदमी हूँ
मुझे आदमी ही रहने दो
हो न हो
तुम्हारा देवत्व पा लेने से
फिर कहीं किसी
शूर्पनखा की
नाक न कट जाय