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मुझे नहीं मालूम खुदाबख्श / कमलेश्वर साहू
Kavita Kosh से
सितारे कब हुए नाराज
कब बदले करवट नक्षत्रों ने
हाथों की लकीरों ने कब बदलीं अपनी दिशाएं
नहीं मालूम मुझे
कब छूटा तितलियों को पकड़ना
फूलों से खेलना कब छूटा
कब भूली भंवरों के पीछे दौड़ना
मिट्टी के घरोंदे बनाना कब छूटा
नहीं मालूम मुझे
नहीं मालूम मुझे
कब उतरी माँ की गोद से
पिता की उंगली कब और कैसे छूटी
किस सुरंग में जाकर गुम हो गई
गांव की पगडंडी
घर का रास्ता
नहीं मालूम मुझे
खिलखिलाकर हंसना कब छूटा
कब बीते सुहाने सपनों के दिन
बच्ची से कब हुई लड़की
कब बदल गई लड़की से युवती में
युवती से स्त्री में
और कब और कैसे बन गई
स्त्री से तवायफ
मैं बिल्कुल सच कह रही हूं
मुझे नहीं मालूम खुदाबख्श-
खुदा कसम !