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मुझे भरोसा है / महेन्द्र भटनागर

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मैं क़ैद पड़ा हूँ आज

अंधेरी दीवारों में;

दीवारें -

जिनमें कहते हैं

रहती क़ैद हवा है,

रहता क़ैद प्रकाश !

जहाँ कि केवल फैला

सन्नाटे का राज !

पर, मैं तो अनुभव करता हूँ

बेरोक हवा का,

आँखों से देखा करता हूँ

लक्ष-लक्ष ज्योतिर्मय-पिण्डों को,

मुझको तो

खूब सुनायी देती हैं

मेरे साथी मनुजों के

चलते, बढ़ते, लड़ते

क़दमों की आवाज़ !

मेरे साथी मनुजों के

अभियानों के गानों की

अभियानों के बाजों की

आवाज़ !

मुझे भरोसा है

मेरे साथी आकर

कारा के ताले तोड़ेंगे,

जन-द्रोही सत्ता का

ऊँचा गर्वीला मस्तक फोड़ेंगे !

इंसान नहीं फिर कुचला जाएगा,

इंसान नहीं फिर

इच्छाओं का खेल बनाया जाएगा !

1951