भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुठ्ठी मेॅ आकाश / संवेदना / राहुल शिवाय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मन में अपनोॅ प्यास जगाबोॅ,
घामोॅ से सींचोॅ, उपजाबोॅ,
अपनोॅ कूबत सेॅ तों रस्ता
करने चलोॅ तलाश |
होथौं देखोॅ एक दिन तोरोॅ
मुठ्ठी मेॅ आकाश |

अपनोॅ अंदर मेॅ तों झांकोॅ,
आगू रस्ता खाली ताकोॅ,
छोटोॅ-छोटोॅ हारोॅ सेॅ नै
मन केॅ करोॅ उदास |
होथौं देखोॅ एक दिन तोरोॅ
मुठ्ठी मेॅ आकाश |

कोनो पथ आसान कहाँ छै,
आसानोॅ मेॅ मान कहाँ छै,
एक दिन तोरा सफलता मिलथौं
करने चलोॅ प्रयास |
होथौं देखोॅ एक दिन तोरोॅ
मुठ्ठी मेॅ आकाश |


रचनाकाल - 03 नवम्बर 2010