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मुनस्यारी / ज्योति शर्मा
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बरसातों के कारण बह रहे है परनाले
झरने और पहाड़ी नदियाँ
तुम दूर चल रहे हो मुझसे
हाथों में नहीं लिया है तुमने मेरा हाथ
कितनी ठंड है यहाँ फिर भी आइसक्रीम
खाने का मन कर रहा है
और तुम्हें गले लगाने का भी
होटल हमारा दूर है तुम मगर पास हो
दुनिया बीच में है
दुनिया मुनस्यारी तक हमारे बीच बीच
चली आई है प्रिय