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मुरहू चले कचेहरी का / पढ़ीस
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कानून कि पुरिया चीखि-चाटि कयि,
मुरहू चले कचेहरी का।
कम्बखती की क-ख-ग-घ पढ़ि,
आए आपु कचेहरी का।
बासन्-भँड़वा, पँड़िया-पँड़वा,
छल्ला-छपका सबु बेंचि खोंचि।
चंडूली चुल्ल<ref>अदम्य इच्छा</ref> मिटावयि का फिरि,
पहुँचु आपु कचेहरी का।
बइठू बाबा की बिटिया का
इनका प्वाता<ref>पुत्र का पुत्र, पौत्र</ref> गरियायि दिहिसि;
बसि, बजी फउजदारी तिहिते अब,
पहुँचे आपु कचेहरी का।
दुयि बीसी रूपया ठननउआ,
लयि लिहिनि उकील बलह्टर जी<ref>बैरिस्टर</ref>।
तारीख बढ़ायिनि पेसी की,
तब पहुँचे आपु कचेहरी का।
युहु दोखु मुकदिमाबाजी का-
नस-नस मा पइठ पढ़ीसन के-
काली की किरिपा कयिसि होयि,
जो छूटयि रोगु कचेहरी का।
शब्दार्थ
<references/>