भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुर्गे की सीख / दीनदयाल शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुर्गा बोला नहीं जगाता
अब तुम जागो अपने आप ।
कितनी घड़ियाँ और मोबाइल
रखते हो तुम अनाप-शनाप ।

मैं भी जगता मोबाइल से
तुम्हें जगाना मुश्किल है
कब से जगा रहा हूँ तुमको
तू क्या मेरा मुवक्किल है ।

समय पे सोना, समय पे जगना
जो भी करेगा समय पे काम
समय बड़ा बलवान जगत में
समय करेगा उसका नाम ।