भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुलाक़ात / वीरा
Kavita Kosh से
					
										
					
					रात भर के बाद
दरवाज़े खोले
तो
रोशनी के साथ
धूप भी आई थी
चुपके से
जब तक मैंने
उसके लिए बिस्तर बिछाया
वह सीढ़ियाँ उतर रही थी।
(रचनाकाल : 1983)
	
	