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मुसा रे मुसा / ओम बधानी
Kavita Kosh से
मुसा रे मुसा ,अलखणि मुसा
जै घर खांदु तु वै घर खोंदु
दोख्खि अघोरि तु कैकु नि होंदु
बैं बूति पुंगड़ी फसल जमै बढै
खांदि बत त्वैन मुसदुळा लुकै
लदोड़ि पांजि त्वैन हमु अंगोठ्या बतै
विराणि कमांईं त्वै न पच्यांन
रात ढैपुरा मंडण घपरौळ
खै खैक लगीं रे त्वै झल बौळ
मेरि मवासी क करीं जगवाळ
तेरि आंखी किरमोळा खान
सैरि कुड़ी मा सुरंग बणैंन
एक भितर का दस द्वार ह्वैगैन
गोर्औं छिबाड़ा भितर रिटणा
तेरि मवासी त्वैक तैं र्वान
पैणा मति पैणा छोरौं कि लंगत्यार
कुतर्य गुदड़ा नि रख्या कुठार
थकी मुसकुड़ी थकी बिराळू
त्वैक त रूठी काल भि काळू
चै दिसौं मचायूं एैकु उत्पात,
केक रंचि विधाता त्वैन य कु जात
मुसा रे मुसा ,अलखणि मुसा
जै घर खांदु तु वै घर खोंदु
दोखि अघोरि तु कैकु नि होंदु