भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुस्कराओ तो दर्द होता है / आनंद कुमार द्विवेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गीत गाओ तो दर्द होता है, गुनगुनाओ तो दर्द होता है,
ये भी क्या खूब दौर है जालिम, मुस्कराओ तो दर्द होता है!

ख्वाहिशों को बुला के लाया था, ख्वाब सारे जगा के आया था,
तेरी महफ़िल से भी सितम के सिवा, कुछ न पाओ तो दर्द होता है!
  
तेरी मनमानियां भी अपनी हैं, तेरी नादानियाँ भी अपनी हैं,
गैर के सामने यूँ अपनों से, चोट खाओ तो दर्द होता है  !

उस सितमगर ने हाल पूछा है, जिंदगी का मलाल पूछा है,
कुछ छुपाओ तो दर्द होता है, कुछ बताओ तो दर्द होता है  !

जिंदगी को हिसाब क्या दूंगा आईने को जबाब क्या दूंगा ?
एक भी चोट ठीक से न लगे, टूट जाओ तो दर्द होता है  !

ये सितम बार-बार मत करना, अब कोई भी करार मत करना
पहले ‘आनंद’ को अपना बोलो , फिर सताओ तो दर्द होता है