मुहब्बत में करना बहाना नहीं
मिला कर नज़र भूल जाना नहीं
निगाहें भटकती रहीं ढूंढ़ती
मिला मीत कोई पुराना नहीं
जमाना खुशी का मुनाजिर रहे
सुने वो ग़मों का तराना नहीं
किये तो हज़ारों हैं वादे मगर
कभी सीख पाये निभाना नहीं
बिछी रेगज़ारों में है रेत यूँ
कि आयेगा मौसम सुहाना नहीं
नहीं आईना झूठ बोला कभी
निगाहों से खुद को गिराना नहीं
बहुत दिन हुए जुल्म के दौर में
सुना खूबसूरत फ़साना नहीं
भले दर्द कितना भी तुम को मिले
मगर दिल किसी का दुखाना नहीं
जो अपने हैं उन पर भरोसा करो
यकीं ग़ैर का आज़माना नहीं