भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मृगतृष्णा / संजीब कुमार बैश्य / अनिल जनविजय
Kavita Kosh से
हज़ारों
उदास चेहरों के बीच भी
मैं ढूँढ़ रहा था सुख
मेरी रन्ध्रों में
सड़कों पर भटकना लिखा था
मेरे दिल में
एक छवि थी
और मेरी आशाओं में थी
एक मृगतृष्णा।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय
लीजिए, अब अँग्रेज़ी में मूल कविता पढ़िए
Mirage
A thousand faces fade
And I look for more
In vain, from street to street.
In my heart, an image
In my hope, mirage.
–Sanjib Kumar Baishya