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मृगनैनी की पीठ पै बेनी लसै / गँग
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मृगनैनी की पीठ पै बेनी लसै, सुख साज सनेह समोइ रही।
सुचि चीकनी चारु चुभी चित में, भरि भौन भरी खुसबोई रही॥
कवि 'गंग’ जू या उपमा जो कियो, लखि सूरति या स्रुति गोइ रही।
मनो कंचन के कदली दल पै, अति साँवरी साँपिन सोइ रही॥
सुंदर पिंगल नैन बण्या अन्नरूप अनार बणी छतियां ।
केहर का सा लक बण्या गज गैयां की चाल चले मतियां ।
कवि गंग कहे कोऊ पुण्य किया इस काठ के पास लगी छतियां ।।
घन ताप बरसात सीत सही उद्यान के बीच खडी दिन रतियां ।
मुख मुख चोंच लुहार गड़ी बीच करोती बहे मतियां ।
तिरिया कहे सुण चातरक ये पुण्य किया तो काठ के पास लगी छतियां ॥