भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मृगनैनी तेरौ यार / ब्रजभाषा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

मृगनैनी तेरौ यार नवल रसिया, मृगनैनी॥ टेक
बडत्री-बड़ी अँखियन नैनन कजरा 2
तेरी टेड़ी चितवन मेरे मन बसिया॥ मृगनैनी.

अतलस को याकौ लँहका सोहै 2
झूमक सारी मेरे मन बसिया, मेरे मन...॥
छोटी-छोटी अंगुरिन मूंदरी सोहै।
याके बीच आरसी मन बसिया, ओ मन...॥ मृगनैनी.

बाँह बरा बाजूबन्द सोहै 2
हियरे हार दिपत छतिया, ओ दिपत॥
रंगमहल में सेज बिछाई 2
यापै लाल पलंग पँचरंग तकिया, ओ पचरंग...॥ मृगनैनी.
‘पुरुषोत्तम प्रभु’ देख विवश भये 2
सबै छाँड़ि ब्रज में बसिया, ओ ब्रज में...॥ मृगनैनी.