भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मृत्यु-विधि / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

स्वप्न देखते

आती होगी मृत्यु,

तन से

प्राण चले जाते होंगे

तभी।


स्वप्न देखता रहता आदमी

दिवंगत हो जाता होगा !


वह क्या जाने ?


दुनिया वालों से पूछो

जिन्होंने —

तन पर रख

ढक दी है चादर !

क्या हुआ ?

हुआ क्या ?

आख़िर ?