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मृत्यु-विधि / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
स्वप्न देखते
आती होगी मृत्यु,
तन से
प्राण चले जाते होंगे
तभी।
स्वप्न देखता रहता आदमी
दिवंगत हो जाता होगा !
वह क्या जाने ?
दुनिया वालों से पूछो
जिन्होंने —
तन पर रख
ढक दी है चादर !
क्या हुआ ?
हुआ क्या ?
आख़िर ?