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मेघ गीत / रूप रूप प्रतिरूप / सुमन सूरो
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उमड़ि-घुमड़ि ऐलै घटा घनघोर कि
हरा कचोर भेलै धरती के कोर कि
हियाँ-हियाँ उठलै हिलोर!
बन-बहियार नाँचै खेत-पथरबा
घर-गलियार डोलै सुधि बनिजरबा,
नदी-नार मचलै मरोर कि छूबी-छूबी कोर कि
हियाँ-हियाँ उठलै हिलोर!
सुती-जागी कटो गेलै रात तिपहिया,
उठी-पुटी बैठी गेलै बुढ़िया-बहुरिया,
रोपनी के पारी गेलै शोरकि दूरबड़ी भोर कि,
हियाँ-हियाँ उठलै हिलोर!
पाख-पखेरू मिली भोर-भिनसरबा,
डहकि-डहकि गाबै गीत-मल्हरबा,
बगिया में मचलै किड़ोर कि, नाँची-नाँची मोर कि
हियाँ-हियाँ उठलै हिलोर!
बैन-बनिहार कान्हाँ हरबा-कोदरबा,
छल-छल हाँसी-खुशी अँखिया के कोरबा,
खम-खम चलै चित चोर कि बैला बड़ी जोर कि
हियाँ-हियाँ उठलै हिलोर!