समरांगण में वीर डटे हैं, दोनों रण करते कमाल हैं
एक ओर वह इंद्रजीत है, एक ओर श्री लखन लाल हैं
एक ओर वह सुलोचना है
पतिव्रत धर्म आचरण करती
एक और उर्मिला सती हैं
लखन नाम की माला जपती
दोनों के पति तेजवान है, दोनों के पौरुष विशाल हैं
बेटा है लंकाधिराज का
निपुण बहुत मायावी रण में
पर माया को आज खिलौना
बना लिया है श्री लक्ष्मण ने
मुकुट उड़ाया मेघनाद का, लखनलाल अब बने काल हैं
मेघनाद का यज्ञ ध्वंस कर
नष्ट किया उसके प्रमाद को
युद्ध भूमि में मार गिराया
वीर लखन ने मेघनाद को
बाल न बांका होता उनका, रघुवर जिनकी बने ढाल हैं