भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरा-तुम्हारा / सलिल तोपासी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुछ दशक पहले अनायास
"यह तुम्हारा है",
कुछ साल बाद "यह हमारा है" ह
क जताते हुए।
"यह मेरा है यह तेरा है"
बाँटते हुए स्वर में
लेकिन आज
अभय होकर,
"यह तो केवल मेरा है
बाकी नहीं कुछ तेरा है"।
लूट और धोखे का तिलक पोत कर
ढोंग रचा कर
"नहीं मेरा कुछ नहीं तेरा कुछ"
कहते हैं, नेता हो या कोई और अन्य
हड़पते तो सब कुछ हमारा ही है।
"मेरे-तुम्हारे" इस किट-पिट में
नहीं बचा एक भी गुण मानवता का,
"मेरा-तुम्हरा" सिद्धांत ही गलत था
परहित का पाठ ही सहज था।