मेरा गाँव / संतोष अलेक्स
सालों बाद गाँव हो आया
गाँव से लौटने पर
एक अजीब सी ऊर्जा होती थी
लेकिन इस बार…..
मेरे गाँव के चाय की दुकान
रंगीन हो गई है
लेज,चीटोस व चीस बॉल से
अब चाचा चाय नहीं
रिचार्ज कूपन बेचता है
मेरे गाँव के लोकगायक
अब गाँव में नहीं है
वे पिस रहे हैं शहरों में
मालिकों के इच्छानुसार गाना पड़ रहा है
जब से शहर आए हैं
मेरे गाँव की नदी को
कौन नहीं जानता
नदी थी तभी तो गाँव बसा
बारिश में तटों को तोड़कर
बहती वह आज
रास्ते में बिखरी पड़ी दूध सी हो गई है
मेरे गाँव में
रातरानी के फूलों की सुगंध होती थी
आंगनवाले घर थे, तुलसी चौरा था
उसपर झुके नीम के पेड़ थे
अब न फूल है न आंगनवाले घर
कुम्हार के टोले की ओर जाती
मेरे गाँव की पगडंडी
तब्दील हो गई है कच्ची सड़क में
चुप हैं
कबरी गाय
दुधिया बिल्ली
जबरू कुत्ता
मेरे गाँव से
बरगद , बबूल और बाँस
खदेड़ दिए गए हैं
अब तो आम, इमली
ककड़ी, कददू
खरबूजा, खीरा
आते हैं शहर से
मेरे गाँव के खेत रो रहे हैं
सिमट रही है सीमाएँ उनकी
खड़ी फसलों के दिन
अब केवल यादें बन गई हैं
मेरे गाँव के
नीम हकीम हलवाई को
निगल लिया है सूपर मार्केट ने
अब सब कहीं प्लास्टिक के बोतल
केरीबेग ………
मेरा गाँव
अब न पूरा शहर है न पूरा गाँव