भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरा जीवन सबका साखी / हरिवंशराय बच्चन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरा जीवन सबका साखी।

(१)
कितनी बार दिवस बीता है,
कितनी बार निशा बीती है,
कितनी बार तिमिर जीता है,
कितनी बार ज्योति जीती है!
मेरा जीवन सबका साखी।

(२)
कितनी बार सृष्टि जागी है,
कितनी बार प्रलय सोया है,
कितनी बार हँसा है जीवन,
कितनी बार विवश रोया है!
मेरा जीवन सबका साखी।

(३)
कितनी बार विश्व-घट मधु से
पूरित होकर तिक्त हुआ है,
कितनी बार भरा भावों से
कवि का मानस रिक्त हुआ है!
मेरा जीवन सबका साखी।

(४)
कितनी बार विश्व कटुता का
हुआ मधुरता में परिवर्तन,
कितनी बार मौन की गोदी
में सोया है कवि का गायन।
मेरा जीवन सबका साखी।