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मेरा नाम / उमा अर्पिता

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त्वचा के रोम-रोम
पर उग आये
भोगे/अनभोगे
संवेदनों के बीच
मेरा नाम--
तुम्हारे नाम की
बैसाखी थामे
सिहर-सिहर कर/संबंधों के
टूटन की भय से जकड़ा-जकड़ा
चलता रहा है
मेरा नाम--जो
किसी का भी हो सकता था,
तुम्हारा भी बन सकता था,
लेकिन बड़ा मुश्किल होता है
भय के साथ जीना, फिर
तुम्हारा नाम तो स्वयं
बैसाखियों का मोहताज लगता है,
इसीलिए-
मेरा नाम
अब किसी का न होकर
केवल मेरा है।