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मेरा समय / कुमार सुरेश
Kavita Kosh से
ठिठुरते हुए एक दिन
कुछ गर्माहट पाने के लिए
जा घुसा इतिहास के पुराने लिहाफ में
बासी हवा से दम घुटने लगा
बाहर निकल आया
संस्कृति और साहित्य की छतरी में
चिरपरिचित सीलन मिली
दोस्त सहकर्मियो के पास
हमेशा की तरह बर्फ थी
मीडिया अपने तई आग देने
की कोशिश करता दिखा
वह शरीर को गर्माने वाली आग थी
दिमाग को निष्चेत
रखने वाली
ओषधियो के साथ
में चिल्लाया
मुझे सभ्यता के जख्मो पर
रौशनी डालने के लिए
आग दो
मरणासन्न आदर्शवाद को
जिन्दा रखने के लिए आग दो
मुझे कुछ आग तो दो
ताकि में थोडा आदमी बचा रह सकू
पुकार सुन
केवल मेंरे समय का बाज़ार आया
गर्म और रोशन आग की जगह
सुन्दर नर्म आग बेचने लगा