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मेरी थकी हुई आँखों को / अज्ञेय
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मेरी थकी हुई आँखों को किसी ओर तो ज्योति दिखा दो-
कुज्झटिका के किसी रन्ध्र से ही लघु रूप-किरण चमका दो।
अनचीती ही रहे बाँसुरी, साँस फूँक दो चाहे उन्मन-
मेरे सूखे प्राण-दीप में एक बूँद तो रस बरसा दो!
दिल्ली, 5 मार्च, 1943