भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरी प्रिया / अजित कुमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वे जो दूर टिमकते हैं दो दीप से

आँखों का झँपना है मेरी प्रिया का ।

वह जो दमक रही है पल-पल दामिनी

प्रेयसि की स्मिति उसे मानता है ह्र्दय ।

मेघों का मृदु-मन्थर गति से तैरना

गजगामिनी प्रिया का मादक गमन है ।

मुझ को प्रतिक्षण घेरे है आकाश जो

यह तो, यही, यही तो मेरी प्रिया है ।