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मेरी राज दुलारी / संजीव 'शशि'
Kavita Kosh से
जन्मी बिटिया घर-अँगना में,
गूँज रही किलकारी।
परियों से भी प्यारी-प्यारी,
मेरी राज दुलारी॥
जी करता है गोद उठाकर,
सारी उमर निहारूँ।
भरे नहीं मन चाहे उसको,
जितनी बार दुलारूँ।
बस इतना चाहूँ मैं उस पर,
वारूँ दुनिया सारी।
करूँ प्रतीक्षा मेरी बिटिया,
पापा कब बोलेगी।
झमझम करती गुड़िया रानी,
घर-अँगना डोलेगी।
महक रही है पा कर उसको,
जीवन की फुलवारी।
बड़े भाग हैं मेरे मैंने,
नन्हीं बिटिया पायी।
कभी ख़त्म ना हो अपने सँग,
ढेरों खुशियाँ लायी।
जिस घर बिटिया उस घर हरपल,
रहती है उजियारी।