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मेरे कवि — 1 / तेजी ग्रोवर

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और उस ज़मीन पर उनकी कविताएँ सुने बिना ही मैं
ख़त्म हुई। मेरे ऊपर उड़ती हुई चीलों की आँखों में भूख
बन चुकी थी। उस समय तक भी सिवा महुआ के किसी
फूल की गन्ध मेरी नहीं हुई थी। उनकी कविताएँ चीलों
से पहले ही मेरी नाभि में प्रविष्ट हो रही थीं। ज़मीन अब
उठ रही थी थककर। उसे भी कहीं चले जाना था, बेशक।
मैं चीलों के आकाश से ही उसे देख रही थी जो थकान
में अपने उठकर चले जाने का अटूट संकेत अब भी मुझे
दिए चली जा रही थी।

एक बार फिर, थोड़ा पलटकर मैंने उसे देखा। विदा में सरकती
हुई उसकी सतह पर एक नाभि के भीतर उनकी कविताएँ
अब जुगनुओं की तरह मुझे वापिस बुला रही थीं।