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मेरे ख़त बस ख़त होते हैं / नईम
Kavita Kosh से
मेरे ख़त बस ख़त होते हैं
होते नहीं जवाब कभी वो,
होते नहीं सवाल कभी वो।
नेह-छोड़ औ दुआ-सलामों
वाले मेरे ये हरकारे
हैं पठार से कुछ ऊँचाई पर
अपनेपन के ये रखवारे।
चाहा भले लाख हो मैंने,
हुए न स्तैमाल कभी वो।
सूखा याकि अकाल पड़ा हो।
गोपन सुख-दुख,
कठिन समय के शिलालेख ये,
जिजीविषा के ये संवाहक,
नहीं किसी की भाग्यरेखा ये।
दे न सकें वो राहत, लेकिन-
भले न कर पाएँ कमाल वो
होते नहीं बवाल कभी वो,
जनम-जनम से
लिखता आया ढाई आखर
ये मेरी मजबूरी है,
मैं इनका चाकर।
अर्जित भले न कुछ कर पाएँ
हो लें स्वतः हलाक भले वो
होंगे नहीं दलाल कभी वो।