मेरे गाँव की चिनमुनकी / धीरज श्रीवास्तव
मीठे गीत प्रणय के गाकर
और रात सपनों में आकर
मुझको रोज छला करती है
मेरे गाँव की चिनमुनकी ।
अक्सर कहकर मर जाऊँगी
मुझको बहुत डराती है !
और ठान ले जो जिद अपनी
मुझसे पाँव धराती है !
कभी - कभी रस खूब घोलकर
और कभी वो झूठ बोलकर
अक्सर बहुत कला करती है
मेरे गाँव की चिनमुनकी।
कहीं देख ले साथ गैर के
फिर आफत बन जाती है !
हो करके वह आग बबूला
गुस्से से तन जाती है !
छुप जाती है कभी रूठकर
रोने लगती फूट - फूटकर
शम्मा बन पिघला करती है
मेरे गाँव की चिनमुनकी।
आ पीछे से कभी - कभी वह
आँख बंद कर लेती है !
नह़ी देखता कोई फिर तो
बाँहों में भर लेती है !
सारे नखरे भूल भालकर
मुझ पर यौवन रूप डालकर
सचमुच बहुत भला करती है
मेरे गाँव की चिनमुनकी।
ये दिल है बस सिर्फ उसी का
चंद दिनों की दूरी है !
छोड़ उसे मैं दूर आ गया
उफ ! कितनी मजबूरी है
यादों में पायल छनकाकर
और कभी कंगन खनकाकर
धड़कन संग चला करती है
मेरे गाँव की चिनमुनकी।