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मेरे गाँव में शाम ढल रही होगी / दिनेश देवघरिया

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बच्‍चे स्कूल से आ गए होंगे।
बस्ता रखते ही
ऊँची छलाँग लगाई होगी,
बग़ीचों,खेत-खलियानों,मैदानों में
धमा-चौकड़ी मचाई होगी।
पतंगें लाल,पीली,नीली
हवा में उड़ रही होंगी,
कहीं लट्टू नाचते होंगे,
कहीं कबड्डी हो रही होगी।
नदिया किनारे
कोई बंसी बजा रहा होगा।
मल्लाह नौका पर
कोई गीत गा रहा होगा।
नउनियाँ मनिहारे से
बिंदिया खरीद रही होगी,
लाला जी ने
छेड़कर चुटकी ली होगी।
पानी का मटका लेकर
गोरियों का झुँड चला आ रहा होगा,
चौराहे पर खड़े
छोरों के मुँह से पानी आ रहा होगा।
कुम्हार बेचकर बर्तन
हाट से आ रहा होगा,
गाय सुन्दर-सी
ख़रीद कोई ला रहा होगा।
किसान खेतों से
आ रहे होंगे,
पंछी घोंसले में जा रहे होंगे।
माँ ने शाम के दीये जलाए होगे।
आज मंगलवार है
रामायण-पाठ के चढ़ावे में
लड्डू आए होगे।
चौपाई-दोहे
हवा में घुल रहे होंगे,
शाम ढल रही होगी
दीपक जल रहे होंगे।