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मेरे पूर्वज / विजय गौड़
Kavita Kosh से
मेरे पूर्वज बधाण पट्टी के थे
शिव की बारात में वे भी गण रहे होंगे
यह मैंने पिता से नहीं इतिहास से जाना;
बाँझ की जड़ों का पानी
जिनके हाजमे को ठीक करता रहा
अखरोट के पेड़ की छाँव में
जिन्होंने अपना पसीना सुखाया
नमक की इच्छा जिन्हें
तिब्बत के पहाड़ों से बाँधती थी
पेट की आग ने जिन्हें
खेतों को सीढ़ीदार बनाना सिखाया
किसी कमीण, किसी सयाणे की तरह
जिन्होंने जीवन नहीं बिताया
जिन्होंने माफ़ी में कभी नहीं लिया
ज़मीन का एक टुकड़ा भी
कुली और बेगार का बोझ
न तो उनके कन्धों की ताकत को
कर पाया ख़त्म
और न ही रोक पाया उन्हें पीठ को झटकने से
मैं अपने उन पूर्वजों को करता हूँ नमन