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मेरे मित्र / शिवनारायण जौहरी 'विमल'
Kavita Kosh से
कोई तो देश के खातिर
कूद कर मैदान में
झंडे में लपिटवा कर अपना बदन
शहीद होकर मर गया
कोई हर घड़ी मरता रहा
डरता रहा छ्क्का लगाने से
विकेट पर बने रहना चाहता था
यह नहीं सोचा तुम्हारा भी
विकेट गिर जायगा इक दिन
संकल्प जिस दिन लिया
चढ़ गया एवरेस्ट पर उस दिन।
मित्र तुमने भी शपथ ली थी इक दिन
पर देश मरता और तुम
जीते रहे अपने लिए?
किसी के घाव पर मरहम लगाया?
किसी की पीर सहलाई?
धरती रही पैरों तले
और दृष्टि तारे गिन रही थी॥