मेरे सपनों का भारत / अमिताभ रंजन झा 'प्रवासी'
हर चेहरे पर मुस्कान हो, हर हाथों को काम हो।
गगन चुम्बी स्वाभिमान हो, हर भारतवासी कीर्तिमान हो।।
वाणी में मिठास हो, सफलताओ की प्यास हो।
आलस्य को अवकाश हो, अनगिनत प्रयास हो।।
कृषि का विकास हो, मंजिले आकाश हो।
अज्ञानता का नाश हो, हृदय में प्रकाश हो।।
आतंक का संहार हो, अहिंसा का व्यवहार हो।
सबको सबसे प्यार हो, ऐसे संस्कार हो।।
अन्न का भंडार हो, नित्य नए आविष्कार हो।
शिक्षा का संचार हो, प्रगति का विचार हो।।
ज्ञान का सम्मान हो, विज्ञान का उत्थान हो।
रोगों की रोकथाम हो, भ्रष्टाचार का न निशान हो।।
मुख पर मोहक हर्ष हो और भीषण संघर्ष हो।
सद्भाव का व्यवहार हो, किन्तु पराजय अस्वीकार हो।।
नित्य नूतन प्रयोग हो, संसाधनों का सदुपयोग हो।
खोयी प्रतिष्टा पुनर्जित करे, लक्ष्य नए निर्धारित करे।।
हर भारतीय आगे बढे, हरसंभव यत्न करे।
सौ बार हो विफल, एक और प्रयत्न करे।।
मिल के ये ले शपथ, चलेंगे हम प्रगति पथ।
फिर ये स्वप्न साकार हो और ऐसा चमत्कार हो।।