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मेरे सपनों का भारत / मदनलाल मधु

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मैं तो देख रहा हूँ सपना
ऐसे हिन्दुस्तान का
जन्म जहाँ पर होगा आख़िर
नए, सुखी इन्सान का
मैं तो देख रहा हूँ सपना ऐसे हिन्दुस्तान का ।

जहाँ न होगी अन्न-समस्या
और भूख का रोना
हरियाली से लहराएगा
जिसका कोना-कोना,
जय-जयकार जहाँ पर होगा, श्रम का और किसान का
मैं तो देख रहा हूँ सपना ऐसे हिन्दुस्तान का ।

राज जहाँ पर नहीं करेगी
पूँजी शोषणकारी
जहाँ न कुछ महलों वाले हों
लाखों नग्न, भिखारी,
जहाँ बनें सच्चे जन-सेवक
शासक सत्ताधारी
पूजा पाठ जहाँ पर होगा, जनता के भगवान का
मैं तो देख रहा हूँ सपना ऐसे हिन्दुस्तान का ।

सदियों का अज्ञान, अँधेरा
जहाँ न शेष रहेगा
धर्म, जाति के मतभेदों का
जहाँ न क्लेश रहेगा,
भारत का हर वासी जिसको
अपना देश कहेगा,
जहाँ मिलेगा पुण्य सभी को, वीरों के बलिदान का
मैं तो देख रहा हूँ सपना ऐसे हिन्दुस्तान का ।

देश-देश में जिसका आदर
जिसका मान बढ़ेगा
ऊँचे नील गगन में जिसका
नव दिनमान चढ़ेगा,
नई सभ्यता, मानवता के
जो भगवान गढ़ेगा,
अग्रदूत बन जाएगा जो अनुपम स्वर्ण-विहान का
मैं तो देख रहा हूँ सपना, ऐसे हिन्दुस्तान का ।