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मेह अंधारी रात / नन्द भारद्वाज

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मेह अंधारी रात
आभौ काटकै
    किड़किड़ियां बांटै
आकड़ां रा पान खड़कै -
खेजड़ै री थोथ में बैठै
बगत री फुरणी बाजै
रूंखां रा थरणा कांपै,
ढांणी अळगी
गाळै री गळांछ में म्हारौ गेलौ देखै -
                  हेला मारै,
( स्यात् औ मन रौ बैम व्है! )

म्हारै पगां हेठै
गेलौ नीं ऊजड़ है
सम्मक सूनियाड़ ---

अेक आंख दूजी नै पूछै
मन मगज री क्याड़ी खड़कावै
अर मगज
सूनियाड़ में चमक्योड़ै हिरण ज्यूं
चौकड़ियां धावै।

कठैई कीं खुड़कौ -
कान चौकन्ना कर
आंख्यां रा कोयां सूं
अंधारौ कुचरूं
टाबर तौ लप दाणां सारू
ठांव संभाळै
धोतियै रा पल्ला झाटकै
अर म्हैं बिरादरी में
स्यांणी बेटी रै सगपण री बात करूं !

चांणचक
आभै में बीजळी खिंवै
अळगौ कठैई
मारग व्हेण रौ बैम हुवै
म्हैं भाजूं
अर आखड़ नै हेठौ पडूं
माथै रौ साफो
कीकर बंचावूं बिखरण सूं -
कादै रा छांटा
गाभां माथै लाग जावै
तौ जोर कांई?

कुण जांणै
जे बिल सूं नीसर काळौ काळींदर
थोथ में बैठोड़ै बगत री फण मार दै
अर बगत रौ जैर
म्हारी जुबान तांई आय पूगै
तौ आ मेह अंधारी रात
         सम्मक सूनियाड़ -
कुण अंवेर करै म्हारी
वां गेलौ उडीकता
भूखा-तिरसा टाबरां री
दूंबै चढ बाट जोवती
धिराणी धापली री -
जिकां खातर जींवतौ हूं आज
इण मेह अंधारी रात में
- औ मन रौ बैम नीं
कड़वौ सांच है !

अक्टूबर, 1971