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मेहंदी / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ
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नन्हें ये मेहंदी के पौधे।
पतली पतली टहनी इनकी।
भरी हुई नन्हें पत्तों से।
लहलह कर बगिया में महकी॥
काँटे ऊँगली में चुभ जाते।
मुन्नी फिर भी नहीं मानती।
सिल बट्टे पर पीस-पीस कर।
अपने हाथो पर रख लेती॥
रच जाती है लाल-लाल फिर।
उसकी नन्ही भरी हथेली।
नाच नाच दिखलाती सबको।
मेहंदी है कैसी अलबेली॥
हरी किन्तु असके भीतर तो।
भरी मनोहर लाली है।
काँटों में पालकर भी सबको।
प्रेम बाँटने वाली है॥
हम भी मेहंदी जैसे गुण से।
सबके प्यारे बन जायेँ।
गुण, प्रतिभा विकास गन्धों से।
नया समाज रचा जायें॥