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मैं और तुम / विमल राजस्थानी
Kavita Kosh से
मैं गीत का गुंजन करूण, तुम सिसकियों का रोर हो
मैं अश्रु की लघु बूँद हूँ, तुम उंगलियों की पोर हो
मैं हूँ उठी श्यामल घटा
सौदामिनी की तुम छटा
अनुगूँज मैं बौछार की
तुम गीत सकरूण अटपटा
मैं हूँ व्यथा का सिन्धु, तुम मँझधार की हिलकोर हो
मैं दर्द हूँ, तुम वेदना
तुम पीर हो, मैं दुःख घना
मैं भावना, तुम कल्पना
दोनों मिले तो कवि बना
मैं बाल रवि की नव किरण, तुम दृष्टि छूती भोर हो
जग ने न देखा नयन भर
कवि का द्रवित सुकुमार मन
यदि देख लेता तो धरा की-
छवि निखरती स्वर्ग बन
मैं सृष्टि-उर की धड़कनें, तुम छवि-क्षितिज का छोर हो
यदि हम न होते, विश्व को-
मधुमास मिल पाता नहीं
छवि-जाल फूलों का सुघर
नभ-बीच खिल पाता नहीं
मैं उमड़ता पावस सघन, तुम मलय वायु-झकोर हो