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मैं कवि था / गौरव गुप्ता
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मैं गड्ढे में धकेल दिया गया
पर मैंने कहा विश्वास करो
मैं छ्ला गया
पर मैंने कहा प्रेम करो
जब कोई जा रहा था
मैंने उसके लौटने का इंतज़ार किया
बहुत अंधेरे दिनों में
मैंने रौशनी की तलाश की
पीड़ा के क्षणों में मैंने
कविताएँ लिखीं
जब सुख के क्षण थे
मैंने उसे फोन लगाया
पर कोई उत्तर नहीं पाया
उसके बन्द दरवाज़े से हर बार
चुपचाप लौट आया।
सबने पूछा-
पूरी जिंदगी तुमने क्या किया
मैं कवि था
सिवाय इन सब के
आखिर मैं कर भी क्या सकता था?