मैं कवि नहीं हूँ / मुकेश कुमार सिन्हा
नजरों के सामने
फड़फड़ाते पन्नों में
झिलमिलाते शब्दों के समूह
जिनमें कभी होता प्यार
तो कभी सुलगता आक्रोश
कभी बनता बिगड़ता वाक्य विन्यास
कह उठता अनायास
“मैं कवि नहीं हूँ”
सफ़ेद फूल में, चमकते तारे में
धुंधले दर्द में, सुनहले मुस्कुराहट में
गुजरे यादों मे, अखरते वर्तमान में
ढूँढता हूँ कवितायें
पर, पता है खुद को
“मैं कवि नहीं हूँ”
छंदों में, गीतों में,
गजल में, शेर में,
यहाँ तक की हाइकु-हाइगा में भी
देखता हूँ खुद का अक्स
पर हर बार सुगबुगाते एहसास
“मैं कवि नहीं हूँ”
मेरे अंदर की कोशिकाएं
उनके समूह उत्तक
या फिर हर एक अंग व अंगतंत्र
मेरा जिस्म भी, खिलखिला कर कह उठा
“मैं कवि नहीं हूँ”
अंततः!!
धड़कते साँसो व
लरजते अहसासों के साथ
करता हूँ मैं घोषणा
“मैं कवि नहीं हूँ”
कहा न – मैं कवि नहीं हूँ”!