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मैं जब भी लिखूंगी प्रेम १० / शैलजा पाठक

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मैं जल्दी-जल्दी लिख रही हूं प्रेम
भंवरे बड़ी देर से खोज रहे हैं फूल
किसान माटी
मां अपना आंचल
पिता अपना कन्धा
बहन अपनी ओढ़ऩी
सब भाग रहे हैं
नंगी सड़कों के शरीर पर काली रातें खुदी हैं
कहीं औंधे मुंह गिरा है हल्दी का कटोरा
पेड़ की डालियां चिता सी जल चुकी हैं कब की
धूप गायब होने के पहले
आसमान की आखिरी नीली मौत के ठीक पहले
मुझे लिखनी है प्रेम पर कविता
'धरती सस्वर अलविदा कहेगी' के पहले
मैं उसके हाथ देना चाहती हूं
अपनी लिखी प्रेम कविता
ये धरती का आखिरी गुलाबी कागज़ होगा।