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मैं जब भी लिखूंगी प्रेम १२ / शैलजा पाठक

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जब हम Œप्यार करते हैं
हम अपने तरीके दुनिया के मायने गढऩे लगते हैं
हम इसकी-उसकी बात नहीं सुनते
हम उस अनुभव में गले तक डूबना चाहते हैं

हमारे लिए उसकी खरीदी डायरी पर
उसके हाथों लिखा अपना ही नाम
नये अर्थों में दिखाई देता है
मन की बेवकूफियां समझदारों को नहीं समझाते
हम Œप्यार में हैं
मेरी नजर में तुम्हारी दुनिया
तुम्हारी धड़कन में मेरा होना

और ये भी कि सोचो तो मुझे
याद करो मेरी बात समय को परे धकेल
मेरे पास आ जाओ
देखो! बस मुझे, सुनो मुझे, सुनाओ

इनकी-उनकी बातें कर शूल मत चुभाओ
सुनो! बस मेरी बात पर मुस्कराओ
आंख भर बेचैनी में काट दो रात
करते रहो जरा अहकी-बहकी बात

चींटियां लाइन से चढ़ रही ऊंची दीवार
सूखा पत्ता डूबता-उतरता हो रहा नदी के पार
दिन ने हाथ बढ़ा साफ कर दिए चांद के जाले
नाव नदी के हवाले
बिजली के तार पर चहक रही मैना
लाल फूल पर रंग ओढ़ी तितलियां

ओह ये पुरुआ पछुआ बयार
जलते दीये में बुझी हुई रात
ख़त्म तेल में पतंगे की देह
बसंत को आजीवन जेल

मन पतझड़ का पेड़
जिद फिर भी कि बंजर का बीज चलो रोप आयें
उम्मीद की तीलियां सुलगाएं

और फिर दुहरायें
कोरे पन्नों पर लिखो मेरा नाम
चमकती जोड़ी भर आंख भी बना दो
झूठा ही सही बहला दो

वही...सुंदर है आंख, मीठी है बात
लम्बे बालों पर फिसलती परियों की कहानी हो तुम...
तुम वही न सुदर्शन राजकुमार...
जो ले जाता है लड़की को सात समंदर पार

राजकुमार जादू जानता है
लड़की को बना देता है परिंदा
अब प्यार पिंजरे में जिंदा
बिजली के तार पर बैठी मैना
चहक रही बार-बार
ऐसा Œप्यार वैसा Œप्यार...।