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मैं जानता था / तेजेन्द्र शर्मा
Kavita Kosh से
घर जिसने किसी ग़ैर का आबाद किया है
शिद्दत से आज दिल ने उसे याद किया है
जग सोच रहा था कि है वो मेरा तलबगार
मैं जानता था उसने ही बरबाद किया है
तू ये ना सोच शीशा सदा सच है बोलता
जो ख़ुश करे वो आईना ईजाद किया है
सीने में ज़ख्म है मगर टपका नहीं लहू
कैसे मगर ये तुमने ऐ सैय्याद किया है
तुम चाहने वालों की सियासत में रहे गुम
सच बोलने वालों को नहीं शाद किया है